Enjoy ghalib shyari

 हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन

दिल के खुश रखने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है


फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ

मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ


ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते

कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।


है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं

वो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था


ऐ बुरे वक़्त ज़रा अदब से पेश आ

क्यूंकि वक़्त नहीं लगता वक़्त बदलने में


हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब

न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे


इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।

वर्ना हम भी आदमी थे काम के


कब वो सुनता है कहानी मेरी

और फिर वो भी ज़बानी मेरी


मरते हैं आरज़ू में मरने की

मौत आती है पर नहीं आती


हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी

कुछ हमारी खबर नहीं आती


जी ढूंढता है फिर वही फुर्सत की रात दिन

बैठे रहें तसव्वुर-इ-जानन किये हुए

Related Posts

Subscribe Our Newsletter